कई दिनों बाद कल रात कुछ लिखने की इच्छा हुई....पर बमुश्किल ये 6 शे'र कह पाया. किसी बात का बड़ा अफ़सोस हो रहा था..आप गज़ल पढेंगे तो पता चल जायेगा-
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किसी की आँख के पानी को मैं सच्चा समझता था,
बड़ा नादान था मैं भी न जाने क्या समझता था,
अजब का आदमी साहब मेरे हिन्दोस्तां का है,
उन्हीं को मुल्क़ सौंपा है जिन्हें झूठा समझता था,
सुना है अब वहाँ ऊँचों की भारी भीड़ होती है,
जहाँ जाना मैं इज़्ज़त को बड़ा ख़तरा समझता था,
बहुत मजबूरियाँ होंगी कि कोई बिक गया होगा,
मैं अबतक रूह के सौदों को इक धंधा समझता था,
ये अच्छा है मसीहा ने गलतफ़हमी मिटा दी है,
मैं अपने मर्ज़ को अबतक बहुत छोटा समझता था,
मेरे हिस्से की खुशियों को उसी ने रोज़ है लूटा,
जिसे आलम का मैं सबसे बड़ा दाता समझता था...
-ऋतेश त्रिपाठी
17/05/09
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किसी की आँख के पानी को मैं सच्चा समझता था,
बड़ा नादान था मैं भी न जाने क्या समझता था,
अजब का आदमी साहब मेरे हिन्दोस्तां का है,
उन्हीं को मुल्क़ सौंपा है जिन्हें झूठा समझता था,
सुना है अब वहाँ ऊँचों की भारी भीड़ होती है,
जहाँ जाना मैं इज़्ज़त को बड़ा ख़तरा समझता था,
बहुत मजबूरियाँ होंगी कि कोई बिक गया होगा,
मैं अबतक रूह के सौदों को इक धंधा समझता था,
ये अच्छा है मसीहा ने गलतफ़हमी मिटा दी है,
मैं अपने मर्ज़ को अबतक बहुत छोटा समझता था,
मेरे हिस्से की खुशियों को उसी ने रोज़ है लूटा,
जिसे आलम का मैं सबसे बड़ा दाता समझता था...
-ऋतेश त्रिपाठी
17/05/09
4 comments:
May 18, 2009 at 2:04 PM
bahut gagra bhaav
bandhaii ho
May 19, 2009 at 1:21 AM
जय हो
वीनस केसरी
June 22, 2009 at 2:44 PM
बहुत मजबूरियाँ होंगी कि कोई बिक गया होगा,
मैं अबतक रूह के सौदों को इक धंधा समझता था,
khoobsoorat hai
‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
इस गज़ल को पूरा पढें यहां
श्याम सखा ‘श्याम’
http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
September 10, 2009 at 6:51 PM
बहुत मजबूरियाँ होंगी कि कोई बिक गया होगा.
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