सेल्स की नौकरी...

स्वाभिमान की बत्ती बना कर,
पैंट की जेब में रक्खी है,
मर्दानगी को बचाये रखने का ये नुस्खा,
एक सेल्स वाले ने ही बताया था.
अचूक निकला.
हफ़्ते में एकाध बार,
(जरूरत होने पर) डाल भी लेता हूँ,
कहाँ??
क्यूँ परेशान करते हो?
तुमको मालूम नहीं क्या?
यार! तुमने कुछ न बेचा हो,
मुमकिन तो नहीं लगता.

आत्मसम्मान ने कुछ दिन ड्राइवर की नौकरी की
फिर खलासी हुआ
आजकल बेरोज़गार है.

दिन भर झोला लटकाए,
मोटरसाइकिल पर सौ-सवा सौ किलोमीटर के सफ़र के बाद,
रीढ और कमर के अस्तित्व को नकारते हुए,
असफ़ल होना,
बच्चों का रोना,
बीवी का सोना,
कुछ नहीं खलता.

ख़ैर,
सब पेशे की मजबूरी है,
बद्तमीज़ को आप कहना
और सूखी हड्डी को चाप् कहना,
दर-असल,
ज़िंदा रहने के लिये ज़रूरी है.

-ऋतेश 
06.05.09

1 comments:

  "अर्श"

May 7, 2009 at 9:47 AM

bahot badhiya marm jaante ho bhaaee... ha ha badhaayee

arsh