हाट में सदियाँ बिकी हैं,पल की चर्चा क्या करें?
आज ये हालात हैं तो ,कल की चर्चा क्या करें?
अब टाट के पर्दे हमें तो कुछ ज़रा जमते नहीं,
पर तुम्हें मंज़ूर हैं,मखमल की चर्चा क्या करें?
जब किवाड़ें बंद थीं तब खिड़कियाँ खुलने लगीं,
अब किवाड़ों पर पड़ी साँकल की चर्चा क्या करें?
अब किवाड़ों पर पड़ी साँकल की चर्चा क्या करें?
सो रहा था एक अरसे से समंदर अब तलक,
एक - दो लहरें उठीं, हलचल की चर्चा क्या करें?
आसमां से हो गयी नफ़रत जला है यूँ चमन,
है नमी से दूर उस बादल की चर्चा क्या करें?
- ऋतेश त्रिपाठी
20.10.08
5 comments:
October 21, 2008 at 5:32 PM
bahut khoob
man ko choo gai
October 21, 2008 at 10:01 PM
खूबसूरत गज़ल है
रितेश जी
बधाई
October 22, 2008 at 7:51 AM
अति सुंदर, रितेश जी!
October 26, 2008 at 12:13 PM
bahot sundar bhai sahab santh me diwali ki shubhkamnayen dher sari..
November 2, 2008 at 10:15 PM
कहां रह गये भाई १० दिन से ऊपर हो गये..?
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