उनके सामने ही क़तरे हलाल होते हैं...


देश में हो रहे बम धमाकों पर हमारे पूँजीवादी दिमाग में उठने वाली क्षणिक उत्तेजना और लगभग नपुंसकता की हद पर पहुँच चुकी हमारी हूक़ूमत के नाम-


उनके सामने ही क़तरे हलाल होते हैं,
चुप रहते हैं समंदर , कमाल होते हैं,

मंज़िल पे पहुँचने की है आरज़ू उन्हें,
दो क़दम पे जो हौंसले निढाल होते हैं,

गज़ब है गुत्थी कि  सुलझती ही नहीं,
इक जवाब आए तो सौ सवाल होते हैं,

बेज़ुबाँ सदियाँ जेहन से उतर जाती हैं,
पलट के बोलें वो लम्हे मिसाल होते हैं,

कौन से जंगल में महफ़ूज़ हैं गज़ाले,
हर जंगल में शिकारी के जाल होते हैं...

-ऋतेश त्रिपाठी

27.09.08

बुरा वक़्त तुमने भी देखा है प्यारे...

बुरा वक़्त तुमने भी देखा है प्यारे,
सँभलो,सँभलने का मौका है प्यारे,

गरीबों के घर में दिये तेल के हैं,
यही रोशनी का छलावा है प्यारे,

जो मंज़िल समझ के सुस्ता रहे हो,
बड़े रहजनों का इलाक़ा है प्यारे,

सब तैयार फ़सलों में कीड़े लगे हैं,
हरियाली बस इक दिखावा है प्यारे,

हमारी ही चीज़ें हमीं तक न पहुँचें,
मेरे दौर का ये तकाज़ा है प्यारे,

तू ही नहीं इस मुहब्बत का मारा,
हमने भी सबकुछ गँवाया है प्यारे,

तुम्हें हो मुबारक़ तुम्हारी किताबें,
हमें ज़िन्दगी ने सिखाया है प्यारे...

-ऋतेश त्रिपाठी
10।09।2008