पाँच बरस का गर्भ गिराकर...

कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. लोक सभा चुनाव भी निकट भविष्य में संभावित हैं. इसी जमीन पर पेश हैं चार शे'र-


पाँच बरस का गर्भ गिराकर मेले की तैयारी है,
हमको भी सदमे सहने की,लुटने की बीमारी है,

शाहों का दरियादिल होना,नई तो कोई बात नहीं,
दमड़ी देकर चमड़ी लेना, शाहों की गमख्वारी है,

जिन पेड़ों के कोने-कोने,जड़तक दीमक फैली हो,
उन पेड़ों पर कोंपल आना,गुलचीं की अय्यारी है,

पंख के नीचे घाव हैं कितने,जाके उससे पूछ ज़रा,
कैद में रहकर गाते रहना, बुलबुल की लाचारी है...

-ऋतेश त्रिपाठी
23.11.2008 


1 comments:

  "अर्श"

November 24, 2008 at 12:29 PM

आखिरी शेर उम्दा है बहोत खूब लिखा है ........ ढेरो बधाई .