तीन अकविताएँ...

आदमी:

बेचारा पुरुष,
जन्मजात लंपट,
जोंक साला,
पेट से ही चूसना सीख के आता है!
क्या लिखूँ इसके बारे में?

औरत:

बेचारी औरत,
क्या करे,
यहाँ काबिलियत पूछता कौन है?
(वैसे काबिलियत दिखाने की कोई खास तमन्ना भी नहीं है)
दिखाने के लिये और बहुत कुछ है!
"भोग्या" सुनने में भले बुरा लगे,
स्त्री सशक्तिकरण और आज़ादी के तमाम दावों के बावजूद,
औरत का सटीक पर्यायवाची यही है!

प्रेम:

प्रेम,
इंटरनेट और महँगे मोबाइल फ़ोन पर चलता एम.एम.एस. क्लिप है,
माँ के लिये सल्फ़ास,
बाप के लिये फ़ाँसी है!
प्रेम बलात्कार है,
गर्भनिरोधक गोली है,
सिक्कों की बोली है,
प्रेम अनचाहा गर्भ है,
प्रेम गर्भपात है,
(आजकल आम बात है)
प्रेम 'रेव' पार्टी की कोकीन है,
रवायतों की तौहीन है,
प्रेम आजकल भद्दा शब्द है,गाली है,
इससे वो अपने कुकृत्य ढाँपते हैं,
जिनकी नीयत काली है..


-ऋतेश त्रिपाठी
14.02.09

1 comments:

  मुनीश ( munish )

April 8, 2009 at 11:35 AM

yaar kamaal hai ! naaz hai tum par . bahut oonchi baat kehte ho bhai.