यूँ तो अपनी जमा-पूँजी लुटाए बैठे हैं,
लोग खुश हैं कि तजुर्बा कमाए बैठे हैं,
ख़बर नहीं उन्हें कि फ़सल डूब रही है,
वो लोग दरिया को मुद्दा बनाए बैठे हैं,
औलाद बेच कर खरीद लाए थे मगर,
माँ-बाप रोटियाँ सीने से लगाए बैठे हैं,
जब भी सोचता हूँ कि हक़ की बात हो,
ये देखता हूँ वो आस्तीनें चढाए बैठे हैं,
अक्सर जो मुझसे शतरंज में हारते रहे,
वो लोग आजकल चौसर जमाए बैठे हैं,
सोच कभी क्यूँ मैं उफ़्फ़ ! नहीं करता,
सौ रिश्ते मुझसे आसरा लगाए बैठे हैं,
आप को अज़ीज रोशनदानों से रोशनी,
सय्याद जंगलों में जाल बिछाए बैठे हैं...
-ऋतेश त्रिपाठी
१७.०७.२००८
विकास का मॉडल क्या होता है इसके बारे में आइये कुछ सरल भाषा में बात कर लें।
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*विकास का मतलब ?*
और भी अमीर हो जाना ।
*अमीर हो जाना मतलब ?*
मतलब हमारे पास हर चीज़ का ज़्यादा हो जाना।
*मतलब पैसा ज़्यादा ,ज़मीन ज़्यादा, मकान ज़्यादा हो जा...
6 years ago
1 comments:
August 31, 2008 at 4:56 PM
यूँ तो अपनी जमा-पूँजी लुटाए बैठे हैं,
लोग खुश हैं कि तजुर्बा कमाए बैठे हैं,
pahali pankti ne hi qtl kar diya...
sundar rachana hai badhai...
Arsh
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