यूँ गूँगी तो अपनी विरासत नहीं थी,
लब खोलने की पर इजाज़त नहीं थी,
जिन्हें मौलवी कब से दुहरा रहे हैं,
इन कुरानों में ऐसी इबारत नहीं थी,
हद है कि वो पसलियों से खफ़ा थे,
उन्हें चाकुओं से शिकायत नहीं थी,
बहुत देर से वो भी सजदा-रवाँ हैं,
उन्हें सर झुकाने की आदत नहीं थी,
खता-ए-नज़र क्या जो तहज़ीब भूली,
उन नज़ारों में कोई नफ़ासत नहीं थी,
इस दौर के सब ख़ुदाओं के सदके!
बंदगी कहीं भी सलामत नहीं थी,
उजालों की बस्ती में ख़तरा बहुत है,
अँधेरों में यूँ भी शराफ़त नहीं थी...
-ऋतेश त्रिपाठी
२६.०६.२००८
कम्युनिटी हेल्थ में एक अद्भुत नाम डॉक्टर सुभाष
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* किंग* जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ से 1969 में MBBS करने के बाद डॉक्टर नरेश
त्रेहन अमरीका चले गए और उनके साथ पढ़े डॉक्टर सुभाष चन्द्र दुबे गुरुसहायगंज।
गुरसह...
7 years ago
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