इंसान को इंसान का डर है,
दिल में इक अंजान सा डर है,
वक़्त तले कहीं पिस ना जाऊँ,
बेबस से अरमान का डर है,
खामोश फिज़ाएँ बता रहीं हैं,
अम्बर को तूफान का डर है,
कब किस ओर चलेगा नश्तर,
किया जो उस एहसान का डर है,
साहब शायद मेरी सुन लें,
मुझको तो दरबान का डर है,
पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
अब किसको भगवान का डर है?
ऋतेश त्रिपाठी
२००५ का कोई महीना
कम्युनिटी हेल्थ में एक अद्भुत नाम डॉक्टर सुभाष
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* किंग* जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ से 1969 में MBBS करने के बाद डॉक्टर नरेश
त्रेहन अमरीका चले गए और उनके साथ पढ़े डॉक्टर सुभाष चन्द्र दुबे गुरुसहायगंज।
गुरसह...
7 years ago
3 comments:
June 30, 2008 at 1:38 PM
itni choti si kavita me itni gahari bat kahane ke liye badhai. likhate rhe.
June 30, 2008 at 2:20 PM
bahot khub kya likha hai....shandar...
July 2, 2008 at 1:22 PM
good work dear....keep rocking
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