ये सन् 2000 में लिखी गई मेरी आरंभिक रचनाओं में से एक है. इस पर खूब पुरस्कार भी मिले स्कूल के दिनों में. आप भी देखें-
12 बज चुके थे,
अखबार के कार्यालय में,
एडीटर साहब परेशान थे,
थोड़े हैरान थे,
आखिर इस शहर को हुआ क्या?
न कोई क़त्ल,
न डकैती, न छिनैती,
न तोड़-फोड़,न छेड़छाड़,
न बलात्कार, न देह व्यापार,
न धरना, न प्रदर्शन,
न ही किसी पार्टी की रैली,
कैसे बदली शहरी शैली?
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अचानक फोन घनघनाया,
एडिटर साहब ने लपक-कर फ़ोन उठाया,
आवाज़ आई,
"कालगर्ल के साथ रंगरेलियाँ मनाते मंत्री जी गिरफ़्तार,
पर किये सारे आरोप अस्वीकार,
बोले- "भले ये लड़की जवान है,
पर मेरी बेटी समान है,
इसे सेक्रेटरी बनाने के लिये बुलाया था,
क्यूँकि ये महिला उत्त्थान का साल है,
पर जाने क्यूँ,
पहले ही उत्त्थान पर इतना बवाल है?
"समर्थकों ने कहा -
"ये विरोधियों की चाल है,
पकड़ी गई लड़की, विरोधी नेता का ही माल है,"
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दोनों गुटों में हाथा-पाई,
जन-सम्पत्ति में आग लगाई,
बाज़ार लूटा,गोली चलाई,
कुछ दर्शक ढेर,
देह ठंडी, आत्मा स्वतन्त्र,
वाह रे लोकतन्त्र !
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शाम तक,
एडीटर साहब थक चुके थे,
चेहरे पर सन्तुष्टि,
अखबार में मसाला,
लोकतन्त्र की प्याली में,
अपराधों की हाला,
विचारों का "मन्थन" कर गोल,
विह्स्की की बोतल खोल,
वो धीरे से पड़े बोल,
"कभी धूप कभी छाया है,
सब लोकतन्त्र की माया है!"
-ऋतेश त्रिपाठी
कम्युनिटी हेल्थ में एक अद्भुत नाम डॉक्टर सुभाष
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* किंग* जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ से 1969 में MBBS करने के बाद डॉक्टर नरेश
त्रेहन अमरीका चले गए और उनके साथ पढ़े डॉक्टर सुभाष चन्द्र दुबे गुरुसहायगंज।
गुरसह...
7 years ago
1 comments:
June 2, 2010 at 6:16 PM
maharshi ko koti koti pranaam,,,is uchh rachna ko pdh hum dhanya ho gaye :bow:
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