मेरा फ़ैसला जिसके बयान पे है...

मेरा फ़ैसला जिसके बयान पे है,
एक लकवा सा उसी ज़ुबान पे है,

ये पता नहीं किधर रुख करेगी हवा,
खुश है तिनका कि अब उडान पे है,

ख़ुदा बोले भी तो अब कौन सुनेगा,
ज़ोर अक़ीदों का फ़क़त अजान पे है,

हैरत कि इस बन्दूकों के दौर में भी,
तुम्हें भरोसा तीर-ओ-क़मान पे है,

गिनाती है रोज़ मुझे सिमटने के फ़ायदे,
उस हवेली की नज़र मेरे मकान पे है,

तेरी ख्वाहिश और टूटते तारे की उम्मीद,
ये नज़र फिर देर से आसमान पे है....

-ऋतेश त्रिपाठी
15.06.2008

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