ख़बर अच्छी है भूख के शिकारों के लिये....

ख़बर अच्छी है भूख के शिकारों के लिये,
हुक्मराँ ख़रीद रहे हैं क़फ़न हज़ारों के लिये,

सबको मालूम कि उस तरफ़ उथला है पानी,
कश्तियाँ फिर भी बेचैन हैं किनारों के लिये,

इक तो आदमी भी बहुत सस्ते थे वहाँ,
कुछ ईंटें भी कम पड़ीं थीं दीवारों के लिये,

चन्द गीली लकड़ियाँ,पागल सा एक शख्स,
फिरता था रात शहर मे शरारों के लिये,

उसने भी सीख लिया अश्क़ छुपाने का हुनर,
हम भी तैयार हैं दिल-फ़रेब नज़ारों के लिये...

-ऋतेश त्रिपाठी
१६.०६.२००८

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