कालेज के दिनों में लिखीं कुछ पन्क्तियाँ...

हमसफ़र छोड़ कर जो भी जाते रहे,
हर घड़ी हर पहर याद आते रहे,

मन्ज़िलों की तरफ़ उठ गये पाँव जो,
ये दीवार और दर और ये घर उम्र भर,
देके आवाज़ उनको बुलाते रहे,

हिचकियों की ज़ुबाँ तुम ना समझे कभी,
हम हिचकियों से ही तुमको बुलाते रहे...

ऋतेश त्रिपाठी
2007 का कोई महीना

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