ख़ता मेरी मुझे बताइये....

ख़ता मेरी मुझे बताइये,
नाहक न पत्थर उठाइये,

खिचड़ी अभी नहीं पकी?
ठंडे चूल्हे फिर सुलगाइये,

इश्क़ में जिस्म लाज़िम है,
दिल मिलाइये,न मिलाइये,

ख़ुशी दुल्हन एक रात की,
रोज़ नया बिस्तर सजाइये,

आपको बटुए की पड़ी है,
अपना गला तो बचाइये!

-ऋतेश त्रिपाठी
२००५ का कोई महीना

1 comments:

  Advocate Rashmi saurana

June 29, 2008 at 10:19 PM

bhut khub.badhai ho.