यूँ गूँगी तो अपनी विरासत नहीं थी,
लब खोलने की पर इजाज़त नहीं थी,
जिन्हें मौलवी कब से दुहरा रहे हैं,
इन कुरानों में ऐसी इबारत नहीं थी,
हद है कि वो पसलियों से खफ़ा थे,
उन्हें चाकुओं से शिकायत नहीं थी,
बहुत देर से वो भी सजदा-रवाँ हैं,
उन्हें सर झुकाने की आदत नहीं थी,
खता-ए-नज़र क्या जो तहज़ीब भूली,
उन नज़ारों में कोई नफ़ासत नहीं थी,
इस दौर के सब ख़ुदाओं के सदके!
बंदगी कहीं भी सलामत नहीं थी,
उजालों की बस्ती में ख़तरा बहुत है,
अँधेरों में यूँ भी शराफ़त नहीं थी...
-ऋतेश त्रिपाठी
२६.०६.२००८
विकास का मॉडल क्या होता है इसके बारे में आइये कुछ सरल भाषा में बात कर लें।
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*विकास का मतलब ?*
और भी अमीर हो जाना ।
*अमीर हो जाना मतलब ?*
मतलब हमारे पास हर चीज़ का ज़्यादा हो जाना।
*मतलब पैसा ज़्यादा ,ज़मीन ज़्यादा, मकान ज़्यादा हो जा...
6 years ago
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