वक़्त के साथ मन्ज़र बदल गये...

वक़्त के साथ मन्ज़र बदल गये,
साये दीवारों के आगे निकल गये,

मज़ा ये कि तेरे इन बाज़ारों में ,
उनके खोटे सिक्के भी चल गये,

हमने आज़मा लिये सारे हातिम,
तुम हो कि किस्सों से बहल गये,

ज़रा सी बारिश गर्मियों में क्या हुई,
तमाम शहर के पाँव फ़िसल गये,

उनको हमारी गरीबी से खौफ़ था,
घर के आईनों पे राख मल गये,

यूँ आग चंद तिनकों में लगी थी,
वहाँ जंगल के जंगल जल गये....

-ऋतेश त्रिपाठी
२००४ का कोई महीना

1 comments:

  Advocate Rashmi saurana

June 29, 2008 at 4:47 PM

bhut khub. likhate rhe.
aap apna word verification hata le taki huko tipani dene me aasani ho.