मुझको एक शब का विसाल दे...

मुझको एक शब का विसाल दे,
और फिर उम्र भर का मलाल दे,

जो फूल हूँ तो सीने से लगा,
जो ख़ार हूँ तो निकाल दे,

मुझे गिरा कि मेरा गुरूर टूटे,
जो गिरूँ तो फिर सभाँल दे,

सिगरेट कि तरह् जला मुझे,
इक कश के बाद उछाल दे....

-ऋतेश त्रिपाठी
16.06.2008

1 comments:

  Ashish

September 3, 2008 at 5:19 PM

bohot khoob!!! bohot badiya likha hai.. likhte rahiye..

मुझे गिरा कि मेरा गुरूर टूटे,
जो गिरूँ तो फिर सभाँल दे,

wah wah!!