जवान बच्चा...

मैनें 6 साल के एक बच्चे से पूछा-,
"बेटा तुम्हें "कार्टून नेटवर्क" और "निक्लोडिअन" में से कौन ज़्यादा पसन्द है?"
बच्चा बोला-"अन्कल आप किस ज़माने की बात करते हैं,
मैं क्या बच्चा हूँ जो कार्टून दिखाने की बात करते हैं,
मेरी ज़िन्दगी "फ़ैशन टी.वी." की पाबन्द है,
"ज़ूम" की भी बुलन्दी बुलन्द है,
और आजकल मज़ा नहीं आता क्यूँकि टेलिकास्ट बंद है,
वर्ना सच बताऊँ तो अन्कल जी,
टी।बी.6 मेरी पहली पसन्द है !

मैनें बच्चे से पूछा-
"बेटा तुम्हारा परिवार कैसा है,
तुम्हारे माता-पिता का व्यवहार कैसा है?"
बच्चा बोला- अन्कल,
आपने निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार का हाल जानने को,
बिल्कुल ठीक नमूना खोजा है,
मेरे घर की हालत बिल्कुल वैसी है,
जैसे आपके नये जूते के अन्दर,
एक फटा हुआ मोजा है!

मेरे पापा जब आफ़िस से घर आते हैं,
पेग पर पेग बनाते हैं,
बोतलें खत्म होने पर सिगरेटें सुलगाते हैं,
और पते की बात बताऊँ अन्कल,
महीने की आखिर में तो बीड़ीयों पे उतर आते हैं!

आफिस से माँ अगर देर से घर लौटे,
तो खरी खोटी सुनाते हैं,
वैसे कालोनी में उनका व्यवहार बहुत अच्छा है,
इसलिये पड़ोस की ऱीना आंटी को डार्लिंग,
और बगल वाली गीता आंटी को जानेमन कह कर बुलाते हैं" !

इतनी देर में मैं बच्चे की प्रखर बुद्धी जान चुका था,
उसकी जवान सोच पहचान चुका था,
मैनें उससे कहा कि-
"बेटे- तुम जो भी फरमाते हो,
बिलकुल ठीक फरमाते हो,
ये बताओ,
विकास की दौड़ में तुम भारत को कहाँ पाते हो?"

बच्चा कुछ देर चुप रहा,
फिर गंभीर होकर धीरे से बोला-
"आज भले ही हमारे पास परमाणु बम है,
अंतरिक्ष और चाँद पर हमारा क़दम है,
हमारी बातों में वज़न, हमारी तकनीक में दम है,
पर आप ही सोचिये अन्कल जी,
मेरे देश में भूखों के लिये रोटियाँ भी तो कम हैं,
यहाँ दहेज को सताई बहुओं की आँखें भी तो नम हैं,
मेरे देश के शरीर पर कपड़े भी तो कम हैं,
और आप कहते हैं विकास की दौड़ में हम हैं?

" ये हमारी सभ्यता का कौन सा रंग है?,
ये हमारी संस्कृति का कौन सा अंग है?,
ये जान लीजीये अन्कल जी,
कि जिस दिन ज़मीन से नाता हमारा टूट जायेगा,
ये विकास सारा हो झूठ जायेगा,
हमारा भाग्य हमसे रूठ जायेगा,
ये मेरा भारत टूट जायेगा,
हम सब का भारत टूट जायेगा.....

-ऋतेश त्रिपाठी
२००४

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